न जाने क्या समझकर कह दिया है।

जो आदम को पयम्बर कह दिया है।।


मेरे पानी से बादल बन के उसने

मुझे सिमटा समंदर कह दिया है।।


कोई कहकर न वो सब कह सकेगा

जो तुमने कुछ न कहकर कह दिया है।।


मेरे शीशे से दिल को क्या समझकर

तुम्हारे दिल ने पत्थर कह दिया है।।


ज़मीं से उठ रहे हैं यूँ बवंडर

ज़मीं को कैसे अम्बर कह दिया है।।


नहीं है दिल मेरे पहलू में उसने

मेरे दिल मे ही रहकर कह दिया है।।


वो खाली हाथ लौटेगा यक़ीनन

उसे सबने सिकन्दर कह दिया है।।


उसे दिक़्क़त है मेरे आँसुओं से

मुझे जिसने सितमगर कह दिया है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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