चल मुझे भी ले के चल उस गांव प्रीतम
धूप भी विश्राम पाती है जहाँ पर
रात भर उनकी प्रतीक्षा में थकी सी
चांदनी आराम पाती है जहाँ पर
पर्वतों के पार ले चल उस जगह तक
ओढ़ता है रवि जहां संध्या प्रहर को
चल जहाँ मधुमास अलसाता है दिन भर
रात में करता है आलिंगन शिशिर को
चल समय की वर्जनाओं से परे भी
ज़िन्दगी कुछ काम पाती है जहाँ पर...
चल जहाँ पर दूर तक फैले नजारे
स्वागतम के गीत गाते दिख रहे हों
चल जहाँ आकाश में बाहें पसारे
चाँद तारे मुस्कुराते दिख रहे हों
देह की आसक्ति के बिन काम रति की
चाहना अंजाम पाती है जहाँ पर.....
#सुरेशसाहनी
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