कृष्ण है तन मेरा
राधिका मन मेरा
मत कहो बावरी
श्याम है मन मेरा.........
प्रेम आधा अधूरा
कोई राग है
या कि चढ़ते हुए
चाँद का दाग है
रागमय तन हुआ
प्रेममय मन हुआ
दागमय जब हुआ
पीत दामन मेरा.......
प्रेम में तो हलाहल
भी अमृत लगे
ज़िन्दगी से परे
प्रेम शाश्वत लगे
जब गरल पी गए
मृत्यु को जी गए
प्रेम में बन गया
विश्व आँगन मेरा.......
ब्रज की गलियों से
जमुना के तट तक चलें
बांसुरी की तरह
हरि अधर से मिलें
तन ये राधा रहे
मन ये मीरा रहे
साथ ब्रज में कटे
शेष जीवन मेरा........
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