समाअत फरमायें
कोई मुतमईन है ज़वाब से।
कोई खुश नहीं है हिसाब से।।
जो ख़ुदा से है तेरी गुफ़्तगू
तो डरे है किसके अज़ाब से।।
तुझे हारना है तो हार जा
मुझे क्या गरज है खिताब से।।
उसे तालिमात से क्या गरज़
जिसे उज़्र है तो किताब से।।
मेरी हौसलों की उड़ान को
क्या डरा रहा है उक़ाब से।।
उसे खार क्यों न अज़ीज़ हों
जिसे डर लगे है गुलाब से।।
उसे कैसे कह दें फक़ीर है
करे ऐश है जो नवाब से।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment