रियाया के लिए भी सोचिए कुछ।
ख़ुदा के वास्ते अब कीजिये कुछ।।
हमारी जान किश्तों में न जाय
ज़हर ही दीजिये पर दीजिये कुछ।।
भला क्यों मुफ़्त देंगे ज़िन्दगी ये
यहाँ मरना भी है तो चाहिये कुछ।।
यहां सब तो खरीदा जा रहा है
जिगर किडनी कि आंखें बेचिये कुछ।।
भले सरकार बहरी हो चुकी है
बहुत चुप रह चुके अब चीखिये कुछ।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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