तमाम उम्र मेरी आशिक़ी ने रश्क़ किया।

जो दिल लगा तो मेरी दिलवरी ने रश्क़ किया।।


 मुहब्बत करके भी डूबा नहीं मुहब्बत में

तभी तो मुझसे मेरी ज़िंदगी ने रश्क़ किया।।


ग़ज़ल से नज़्म तलक सब फिदा रहे मुझ पर

इस एक फ़न पे मेरी शायरी ने रश्क़ किया।।


किसी ने याद किया ना कोई भुला पाया

इसी अदा पे मेरी बेख़ुदी ने रश्क़ किया।।


जो तूने दे दिए वे ग़म ख़ुदा की नेमत थे

मेरे ग़मों से मेरी हर खुशी ने रश्क़ किया।।

सुरेश साहनी ,कानपुर


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