कुछ शह पर कुछ मातों पर।
बातें निकली बातों पर।।
शायर आँखे मूंदे थे
मौजूदा हालातों पर।।
काम किये होते तो क्या
टिकटें बाँटी जातों पर।।
माँ चुप थी आँगन रोया
बहुएं खुश थी सातों पर।।
प्यार हुआ जब दौलत से
क्या कहता जज़्बातों पर।।
रातें भारी नींदों पर
दिन भारी हैं रातों पर।।
मौसम नम था अश्क़ों से
शक़ ठहरा बरसातों पर।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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