कोई कहकर मुहब्बत कर रहा है।

कोई स्वीकारने से डर रहा है।।


अधूरा लग रहा है सब किसी को

कोई सब कुछ मुक़म्मल कर रहा है।।


किसी ने तिश्नगी देखी लबों की

कोई होठों से प्याले भर रहा है।।


रही इक शख़्स को मुझसे भी उलझन

मुझे भी दर्द ये अक्सर रहा है।।


उसी ने अजनबी मुझको बताया

जो मेरे साथ जीवन भर रहा है।।


ज़हर पीने से है क्या उज़्र पूछो

बताता है कि वो शंकर रहा है।।


सुरेश साहनी, अदीब कानपुर

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