मुहब्बत तिश्नगी का नाम है क्या?

हमारा हुस्न कोई ज़ाम है क्या?

गली में मेरी मिलते हो हमेशा

सही कहना तुम्हें कुछ काम है क्या?

ये जो तुम इश्क़ बोले हो हवस को

इसी से आशिक़ी बदनाम है क्या?

चले आये हो मक़तल में भटककर

पता है इश्क़ का अंजाम है क्या?

कि हमने जान देके दिल लिया था

बतायें क्या कि दिल का दाम है क्या?

यहाँ दिन रात हम खोए हैं तुममे

सुबह क्या है हमारी शाम है क्या?

सलीबो-दार ओ जिंदानों-मक़तल

सिवा इनके कोई ईनाम है क्या?.....


सुरेश साहनी, कानपुर

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