महका महका मेरा आँगन रहता है।
तुम रहती हो गोया गुलशन रहता है।।
रातें रजनीगंधा सी महकाती हो
दिन भर सारा घर चंदन वन रहता है।।
चाँद नहीं आता है कोई बात नहीं
मेरा घर तो तुमसे रोशन रहता है।।
जिस घर पूजी जाती है प्रातः तुलसी
वो घर मंदिर जैसा पावन रहता है।।
एक तुम्हारे होने से मेरे घर मे
नियमित पूजन अर्चन वंदन रहता है।।
तुम कहती हो आप का घर अपने घर को
हाँ यह सुनने को मेरा मन रहता है।।
मेरा होना है घर का गोकुल होना
तुम रहती हो तो वृंदावन रहता है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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