नींद आंखों को लोरी सुनाती रही।
याद तेरी मगर कसमसाती रही ।।
हिज़्र का ग़म सुनाते तो आख़िर किसे
ख़्वाब में तू ही तू मुस्कुराती रही।।
चाँद बादल में छुपता निकलता रहा
और यादों की बारात आती रही।।
गुनगुनी धूप में मन ठिठुरता रहा
चाँदनी रात भर तन जलाती रही।।
ख़्वाब बनते बिगड़ते रहे रात भर
नींद पलकों पे नश्तर चुभाती रही।।
सुरेश साहनी
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