आज वही सब खुद भी दहले बैठे हैं।

जो जो बारूदों पर टहले बैठे हैं।।


चकाचौंध होते हो जिन किरदारों से

वे ही बनकर साँप सुनहले बैठे हैं।।


भटका देंगे तुम्हें तुम्हारी मन्ज़िल से

मन्ज़िल पर जो बने मरहले बैठे हैं।।


साँप बिलों में मिलते हैं तुम सोचोगे 

आज बनाकर महल दुमहले बैठे हैं।।


वक्त शेर को सवा सेर दे देता है

हर नहले के आगे दहले बैठे हैं।।


सुरेशसाहनी, कानपुर

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