आँसू से गागर भर भर कर

अंतरतम तक सूख चुका हूँ

अपनी पनिहारिन से मिलकर

पनघट से प्यासा लौटा हूँ


प्रणयाकुल तन जलते जलते

टूट चुका है खुद को छलते

थकी आस ले चलते चलते

किस्मत भरी गागरी जैसा

मन्ज़िल पर आकर फूटा हूँ


चंचल नद सी तुम बौराई

यद्यपि देता रहा दुहाई

किन्तु न तुमने प्यास बुझाई

सागर से टकरा सकता था

किन्तु हृदय से हार गया हूँ


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132



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