मुहब्बत का असर होने लगा है।

वो खुद से बेख़बर होने लगा है।।

जहाँ तन्हाईयाँ काटा किये थीं

वहीँ तनहा गुज़र होने लगा है।।

बड़ा मुश्किल सफ़र लगने लगा था

बहुत आसाँ सफर होने लगा है।।

कोई जलवा अयाँ होने न पाए

ज़माना पुरख़तर होने लगा है।।

उसे पिघला दिया हैं आंसुओं से

ये नुस्खा कारगर होने लगा है।।


सुरेशसाहनी, अदीब

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है