यार इतनी बड़ी सजा मत दे।
बिन तेरे जीस्त की दुआ मत दे।।
दिल के पन्नों को फड़फड़ाने दे
इनको कसमों तले दबा मत दे।।
राख यादों की है दबाये रख
भूल कर भी इसे हवा मत दे।।
जिनके हाथों में सिर्फ पत्थर हों
भूल कर उनको आईना मत दे।।
दिल्लगी दिल से भूलकर मतकर
ऐसे जज्बों को हौसला मत दे।।
मैं मेरे हाल में मुनासिब हूँ
यूँ मुझे देवता बना मत दे।।
बेहतर है अदीब अनपढ़ ही
ढाई अक्षर कोई पढ़ा मत दे।।
सुरेश साहनी, अदीब, कानपुर
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