आज की ग़ज़ल समाअत फरमायें।---


गर्दिशों की उठावनी कर दे।

खत्म  ग़रीब- उल- वतनी कर दे।।


उनके हिस्से में चाँद तारे रख

कुछ  इधर भी तो रोशनी कर दे।।


बेहतर है फ़कीर रख मुझको

हाँ मुझे बात का धनी कर दे।।


ज़िस्म जैसा है ठीक है फिर भी

मेरी अर्थी  बनी ठनी   कर दे।।


दिन किसी भी तरह गुज़ार लिया

शाम कुछ तो सुहावनी कर दे।।


धूप से कब तलक तपायेगा

मुझको इतना न कुन्दनी कर दे।। 


सुरेश साहनी

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