ज़िन्दगानी अपनी कामिल तो नहीं पर ठीक है।

आप जैसा कोई हासिल तो नहीं पर ठीक है।।


राह पर हैं जिंदगी भर , राह में ठहराव भी

मरहले हैं कोई मंज़िल तो नहीं पर ठीक है।।


चाहते थे इस नशेमन को नज़र लगने न दें

दाग ही है कोई काजल तो नहीं पर ठीक है।।


हम तुम्हारे इश्क़ में जो मर मिटे तो क्या हुआ

हाँ तेरी चाहत के क़ाबिल तो नहीं पर ठीक है।।


हम जहाँ हैं दर्द है, यादें हैं तनहाई भी है

ये तेरे दर्जे की महफ़िल तो नहीं पर ठीक है।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

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