आपकी छाँव की ज़रूरत थी।
प्यार के गांव की ज़रूरत थी।।
इश्क़ की बेड़ियों ने बांध दिए।
रक़्स को पाँव की जरूरत थी।।
ज़ीस्त ने मौत से मुहब्बत की
मौत को दाँव की ज़रूरत थी।।
सिर्फ़ दो गज़ ज़मीन है मन्ज़िल
क्या इसी ठाँव की ज़रूरत थी।।
प्यार में डूबना था दोनो को
फिर किसे नाव की ज़रूरत थी।।
और मैं तू ही तू पुकार उठा
बस इसी भाव की ज़रूरत थी।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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