मेरी आज की रचना। जन्मदिन मेरी रचनाधर्मिता में बाधक नहीं । समाअत फरमाएं।


क्या मिली है ज़िन्दगी तक़दीर में।

दिल है दरिया तिश्नगी तक़दीर में।।


हर तरफ जलवे मुनव्वर हैं मगर

है बला की तीरगी तक़दीर में।।


उसने आंखों के उजाले ले लिए

और भर दी रोशनी तक़दीर में।।


जबकि रांझा ने नहर ला दी मगर

क्या बदा था हीर की तकदीर में।।


एक दुखियारा सहम कर मर गया

इस तरह आयी खुशी  तक़दीर में।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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