चलो बड़े हो बने रहो सर।

ठूंठ के जैसे तने रहो सर।।


फिर गरीब की लुटिया थारी

जब तक ना बिक जाए सारी

तब तक ज़िद पर ठने रहो सर।।


जितना जनता से ले पाओ

पूंजीपतियों को दे जाओ

जनता के झुनझुने रहो सर।।


जनता सब कुछ सह सकती है

धर्म बिना कब रह सकती है

हरदम खाई खने रहो सर!!


कोरी नैतिकता क्या होगी

थोथी मानवता क्या होगी

राजनीति में घने रहो सर!!


सुरेश साहनी कानपुर

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