शीशा शीशा पत्थर पत्थर पटकोगे।

क्या अपनी ख़ुद्दारी ही धर पटकोगे।।


हाथ पसारोगे किस किस के आगे तुम

किसकी किसकी ड्योढ़ी पर सर पटकोगे।।


गर्द ज़मीं की ले जाओगे अम्बर तक

या धरती पर लाकर अम्बर पटकोगे।।


कुछ अपनी गलती भी मानोगे या फिर

अपनी हर ख़ामी औरों पर पटकोगे।।


माना साहब शौचालय बनवा देंगे

भूखे पेटों क्या ले जाकर पटकोगे।।


पैर पटकना बच्चो को ही भाता है

पागल हो क्या बूढ़े होकर पटकोगे।।


साँप निकल कर कुर्सी पर जा बैठा है

अब क्या लाठी अपने ऊपर पटकोगे।।


घर छूटा नौकरी गयी हल बैल बिके

बेगारी में कितना जांगर पटकोगे।। 


सुरेश साहनी, अदीब

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