हमको बकरों से बैर नहीं।
पर अब मुर्गों की ख़ैर नहीं।।
कुछ भी हैरतअंगेज नहीं
बकरे से भी परहेज़ नहीं
सावन बीता अब देर नहीं।।
अब सारी कसमें टूटेंगी
फिर से फुलझड़ियां छूटेंगी
अब से तौबा की टेर नहीं।।
पौवा अद्धा पूरी बोतल
ठेके मैखाने या होटल
चल चलते हैं मुंह फेर नहीं।।
छह दिन हाथों में ज़ाम रहे
एक दिन बाबा के नाम रहे
अब इतना भी अंधेर नहीं।।
सब चलता है पर ध्यान रहे
हर नारी का सम्मान रहे
ये कम्पू है अज़मेर नहीं।।
सुरेश साहनी , कानपुर
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