हम ही ख़ुद से छल करते  हैं

किसको कौन छला करता है।

अपनी गलती से यह जीवन

रेत सदृश फिसला करता है।। हम खुद को


हम नाहक डरते रहते हैं

हानि लाभ उत्थान पतन से

कर्म प्रधान विश्व में डर क्या

छुद्र ग्रहों के चाल चलन से

 

उगता चढ़ता ढलता सूरज

अपनी चाल चला करता है।।हम खुद को


जन्म मृत्यु केवल पड़ाव है

खोना पाना सहज क्रिया है

ईश्वर ने सम्पूर्ण प्रकृति को

जीवन का सन्देश दिया है


नश्वरता के गुण से जातक

वस्त्र नये बदला करता है ।।हम खुद को


जीवन के आगे जीवन है

सपनो की भाषा जीवन है

स्वप्न सजाकर देखो नूतन

आशा प्रत्याशा जीवन है


जागी अधनिंदी आँखों में

सपना एक पला करता है।। हम खुद को

सुरेश साहनी,कानपुर

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