हम हैं इक अदना कलमकार

तुम हो ऊँचे साहित्यकार

तुम कुछ भी लिख दो चलता है

गाली गँवई सब अलंकार

तुम शहरी सभ्य सुसंस्कृत हो

हम निराभट्ट देशी गँवार

तुम तथाकथित एलीट क्लास

हम थर्डक्लास वाले विचार

हम अच्छा लिख कर भी होंगे

दो रुपया के कूड़ा कबार

तुमको अग्रिम भी हासिल है

हम सम्पादक को लगे भार

तुम छंद बद्ध हम छंद मुक्त

हम बन्द बुद्धि तुम समझदार

तुमको आख़िर किसका भय है

क्यों हम पर करते हो प्रहार

ओ भटगायक दरबारदार

ओ तथाकथित साहित्यकार......

Suresh Sahani ,कानपुर

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