कल जाने क्या भूल गया मैं
आज बहुत बेचैनी में हूँ।
तुम श्लोकों में मत भटको
मैं साखी, शबद, रमैनी में हूँ।।
कागद कागद आखर आखर
भटका काशी कसया मगहर
प्रेम न जाना फिर क्या जाना
करिया अक्षर भैंस बराबर
बस इतने पर भरम हो गया
मैं कबीर की श्रेणी में हूँ।।
मीरा ने अनमोल बताया
वह माटी के मोल बिक गया
मैं भी मिट्टी का माधो सुन
ढाई आखर बोल बिक गया
अब कान्हा के अधरों पर हूँ
या राधा की बेनी में हूँ।।
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