मैं दरिया होके भी प्यासा रहा हूँ।
सिला होने का अपने पा रहा हूँ।।
मेरे बेदाग कपड़ों पे न जाओ
लहद को क्या पता मैं आ रहा हूँ।।
इन्ही में दर्द की बारीकियां हैं
ख़ुशी के गीत जो मैं गा रहा हूँ।।
कभी महफ़िल कभी खलवत मिली है
कभी जंगल कभी सहरा रहा हूँ।।
तुम्हारी बन्दगी है जानलेवा
सनम-ए-संग होता जा रहा हूँ।।
पता होता तेरा तो क्यों भटकता
अभी दैरो-हरम से आ रहा हूँ।।
हमारे इश्क़ में कोई कमी थी
तभी तो उम्रभर तन्हा रहा हूँ।।
सुरेश साहनी अदीब
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