समय मिले तो इसी प्रेम पर कल इक नई कहानी लिखना।
मैं ढाई आखर बाँचुंगा तुम कबीर की बानी लिखना।।

मेरे सपनों में तुम अक्सर जब मुझसे मिलने आए हो
बिल्कुल परीकथाओं जैसे इक क़िरदार नज़र आये हो
अब मिलना तो रोजी रोटी में हैरान जवानी लिखना।। मैं ढाई आखर....

जिस दुनिया मे प्यार मुहब्बत मजहब है वो और कहीं है
जिस महफ़िल में प्यार का ऊँचा मनसब  है वो और कहीं है
यह दुनिया  नफरत की लिखना दौलत की मनमानी लिखना।। मैं ढाई आखर ......

आधी उम्र बिताकर हम तुम क्या फिर स्वप्न सजा सकते है
पहले जैसे अनजाने बन क्या वे पल दोहरा सकते हैं
क्यों फिर वह पागलपन करना किसको राजा रानी लिखना।।मैं ढाई आखर........

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है