आप जब भी जनाब आते थे।

मौसमों पर शबाब आते थे।।


पूरा कॉलेज आँख से पी ले

भर के इतनी शराब आते थे।।


हाय क्या दिन थे इश्कबाज़ी के

क्या सुहाने से ख़्वाब आते थे।।


एक हम ही न थे मरीज वहां

कितने खानाख़राब आते थे।।


इश्क़ से ही सवाल उठते थे

इश्क़ ही को जवाब आते थे।।


उनकी साँसे थी या कि बादे- बहार

या कि उड़ के गुलाब आते थे।।


ऐसे आते थे बाजदम गोया

इश्क़ के मास्साब आते थे।।


और जाते थे जब भी पहलू से

जाने कितने अज़ाब आते थे।।


हुस्न हरदम रहा मुनाफे में

उसको सारे हिसाब आते थे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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