खुला नक़ाब सवेरे का हय सुभानअल्लाह।

वो माहताब सवेरे का हय सुभानअल्लाह।।


ख़ुदा भी रश्क़ करे है मेरे मुक़द्दर पर

मेरा रुआब सवेरे का हय सुभानअल्लाह।।


जो माहरुख पे पड़ी है शुआये सूरज की

खिला गुलाब सवेरे का हय सुभानअल्लाह।।


वो नूर जलवानुमा है मेरी मुहब्बत पे

वो आफताब सवेरे का हय सुभानअल्लाह।।


सवाल उसके जो आएं हैं बन के अंगड़ाई

मेरा जवाब सवेरे का हय सुभानअल्लाह।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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