तुम्हें मिलकर नफ़स कुछ यूँ चली है ।
हवाओं में बला की खलबली है।।
रहा है इश्क़ संजीदा अज़ल से
फ़ितरते- हुस्न अज़ल से मनचली है।।
पतंगा मर मिटा है इक शमा पे
शमा अगनित पतंगों से मिली है।।
चलो उस दश्त में कुछ पल गुज़ारें
मुहब्बत की जहाँ लौ सी जली है।।
धड़कते दिल पे आकर हाथ रख दो
पता तो हो ये कैसी बेकली है।।
सुरेशसाहनी,कानपुर
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