मैं उस निगाहेनाज़ से गिरकर सम्हल गया।

हैरत है राहेइश्क़ पे चलकर सम्हल गया।।


आने पे उनके जब कोई हरकत नहीं हुई

अगियार कह उठे मुझे मरकर सम्हल गया।।


किसने कहा ख़ुदा में खुरापातियाँ न थीं

सच  है कि वो इबलीश से डरकर सम्हल गया।।


जो आसमान में उड़े उनकी ख़बर कहाँ

हाँ मैं ज़मीन पर पड़ा रहकर सम्हल गया।।


दैरोहरम में ख़ूब बहकता था जो अदीब

वो मैक़दे में इक दफा आकर सम्हल गया।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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