उठाये हुए हैं मुहब्बत का परचम ।
अली दम कलन्दर कलन्दर अली दम।।
कई चाँद सूरज यहां हाज़िरी दें
यही तो है मरकज़ कहाँ हाज़िरी दें
यहीं से है हरसू उजाले का आलम।।
कभी राम बनकर कभी श्याम बनकर
दुखी दीन लोगों के सुख धाम बनकर
यही है अनलहक यही ब्रम्ह सोहम्।।
उठाये हुए हैं मुहब्बत का परचम ।
अली दम कलन्दर कलन्दर अली दम।।
कई चाँद सूरज यहां हाज़िरी दें
यही तो है मरकज़ कहाँ हाज़िरी दें
यहीं से है हरसू उजाले का आलम।।
कभी राम बनकर कभी श्याम बनकर
दुखी दीन लोगों के सुख धाम बनकर
यही है अनलहक यही ब्रम्ह सोहम्।।
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