आस के जंगल जलायें किसलिए।

मरूथलों में घर बसाएं किसलिए।।


फिर नए सपने सजाएं किसलिए।

प्यार वाले गीत गायें किसलिए।।


किसकी ख़ातिर रक़्स का आलम बने

फिर वही धुन गुनगुनाएँ किस लिए।।


दुश्मनों से बेनयाज़ी क्यों करें

दोस्तों को आज़माएँ किसलिए।।


मन्ज़िलों को पा के गाफ़िल क्यों रहें

रास्तों को भूल जायें किसलिए।।


सब यहीं रह जायेगा मालूम है

तुम कहो जोड़ें घटायें किसलिए।।


अपनी फ़ितरत हैं भँवर से खेलना

हम समन्दर में न जायें किसलिए।।


सुरेश साहनी,अदीब

कानपुर

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