फिर तसल्ली का गुमां रोशन है।
फिर अयोध्या की फिजां रोशन है।।
आज सरकार ने दिल खोला है
मेरे मालिक का मकां रोशन है।।
रोशनी क्या है हक़ीक़त समझें
झूठ से सारा ज़हां रोशन है।।
रोशनी तीर से तलवार से है
इल्म से ख़ाक ज़मां रोशन है।।
यां चिरागां की ज़रूरत ही न थी
नूरे अवधी से समां रोशन है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment