अब वो हर मौसम में खिलना सीख गया है।
बिना सहारे के भी पलना सीख गया है।।
इतनी शतरंजी चालों से गुज़रा है वो
सीधा आड़ा तिरछा चलना सीख गया है।।
एक न एक दिन कामयाब उसको होना है
वो गिर कर भी स्वयं सम्हलना सीख गया है।।
हर लिहाज से राजनीति में सफल रहेगा
गिरगिट जैसा रंग बदलना सीख गया है।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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