सभी जाते हैं जाऊँगा यक़ीनन।
मगर मैं फिर से आऊँगा यक़ीनन।।
कि गाऊँगा ही गाऊँगा यक़ीनन।
तुम्हें फिर गुनगुनाउंगा यक़ीनन।।
ये रिश्ता इस ज़हां तक ही नहीं है
जहाँ जाऊँ निभाउंगा यक़ीनन।।
भुला पाना तो मुमकिन ही नहीं है
मैं रह रह याद आऊँगा यक़ीनन।।
क़यामत तक मिलोगे ये गलत है
मैं तब तक रुक न पाऊंगा यक़ीनन।।
मैं मधवा-ए-मुहब्बत से भरा हूँ
मिलोगे तो पिलाऊंगा यक़ीनन।।
ख़ुदा से है शिकायत ढेर सारी
रोज़-ए-हश्र उठाऊंगा यक़ीनन।।
मुहब्बत का ख़ुदा होकर रहूँगा
नयी दुनिया बसाऊँगा यक़ीनन।।
कोई परदा नहीं होता ख़ुदा से
अगर है तो हटाऊंगा यकीनन।।
तुम्हारी याद में लिक्खी ग़ज़ल है
ये दुनिया को सुनाऊंगा यक़ीनन।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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