उस पहाड़ के पीछे पसरी फूलों वाली उस घाटी में 

खो आया हूँ अपने दिल को

अगर मिले तो लौटा देना.......


बैठ गया था तन गाड़ी में मन मेरा फिर भी उदास था

लौटा था जब तेरे शहर से तन तो लौटा

अगर मिले मन समझा देना.......


मैं तेरा था तुम मेरी थी किससे कहता तुम न दिखी थी

चलते चलते कोशिश की थी एक झलक की

समय मिले तो दिखला देना.....


वैसे भी जीवन कितना है सच पूछो तो बीत चुका है

सांसों के थमने से पहले कोशिश करना

कभी मिलो तो महका देना .......


सुरेश साहनी, कानपुर

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