तुम जो कह दो तो मुस्कुराएं हम।
तुम कहो ग़म में डूब जाएं हम।।
तुम कहो और इम्तेहां दे दें
चढ़ के दार-ओ-सलीब आएं हम।।
याद करते हैं तुम को खलवत में
और कितना क़रीब आएं हम।।
तुमको रुसवाईयों का डर भी है
दरदेदिल फिर किसे सुनाएं हम।।
एक तेरी गली ठिकाना है
घर कहीं और क्यों बनायें हम।।
आओ होठों पे एक ग़ज़ल बनकर
तुमको ताउम्र गुनगुनाएं हम।।
आशिक़ी में तेरे फक़ीर हुए
और देते कहाँ सदायें हम।।
#सुरेश साहनी, कानपुर
सम्पर्क- 9451545132
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