चल जिधर चल दे ज़माना।
बैठ कर क्या दिन बिताना।।
चार दिन की जिंदगानी
क्या बनाओगे ठिकाना।।
सिर्फ इक पीने की खातिर
कब तलक होगा बहाना।।
उम्र भर बुनने हैं सपने
रोज़ ताना रोज़ बाना।।
ज़िन्दगी सचमुच कठिन है
तुम इसे आसां बनाना।।
कौन रोता है यहां पर
इक मेरी ख़ातिर यगाना।।
जीतने से भी बड़ा है
दिल किसी पर हार जाना।।
क्या लिखें क्यों कर लिखें हम
अब किसे सुनना सुनाना।।
सुरेश साहनी कानपुर
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