सुना है तुम उजाले कर रहे हो।
करम दिन में निराले कर रहे हो।।
अभी सूरज कहीं डूबा नहीं है
उसे किसके हवाले कर रहे हो।।
ग़रीबों को बड़ा सपना दिखाकर
उन्हें फिर अपने पाले कर रहे हो।।
तुम्हीं ने मार डाले स्वप्न उनके
तुम्हीं अब आहो- नाले कर रहे हो।।
सजा इकदिन तुम्हें मिलकर रहेगी
मुहब्बत में घुटाले कर रहे हो।।
तुम्हारा पेट कितना बढ़ गया है
हज़म किसके निवाले कर रहे हो।।
मरोगे स्वर्णमृग फिर एक दिन तुम
अभी सीता चुरा ले कर रहे हो।।
तुम्हारे काम हैं सब कंस जैसे
दिखावे कृष्ण वाले कर रहे हो।।
अभी है वक़्त कर लो साफ दामन
मुसलसल काम काले कर रहे हो।।
सुरेश साहनी,अदीब
कानपुर
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