मेरे शब्द तेवर बदलने लगे हैं।

मेरे गीत भी सच उगलने लगे हैं।।

मेरी बेख़ुदी वाकई बढ़ गयी है

कदम लड़खड़ा के सम्हलने लगे हैं।।

न जाने कहाँ से उड़े हैं ये जुगनू

अंधेरों के दिल भी दहलने लगे हैं।।

उधड़ने लगी है अंधेरों की चादर

सुआओं के धागे निकलने लगे हैं।।

कहानी वहीं की वहीं रुक गयी थी

अभी उसके किरदार चलने लगे हैं।।

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है