बड़ा कोहराम ढाया तितलियों ने।

चमन को फिर बचाया बिजलियों ने।।


मछेरे जाल में जब भी फँसे हैं

बचाया है हमेशा मछलियों ने।।


हमारी तिश्नगी सहरा ने समझी

मेरा सागर सुखाया बदलियों ने।।


अगर बचना है तो उतरो भँवर में

सिखाया डूब जाना मछलियों ने।।


बड़ा होकर भी कठपुतली बना तो

नचाया है सियासी उंगलियों ने।।


सुरेश साहनी,कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है