किस दूरी का वास्ता देने लगे हुज़ूर।
दिल दिल्ली से दूर था या दिल्ली थी दूर।।
हम अपने सीवान में आप बसे बंगलूर।
तब भी तो दिल मे मेरे बैठे मिले हुज़ूर।।
दूरी का शिकवा गया देख चाँद का नूर।
कोई भी दूरी कहाँ इंतज़ार से दूर।।
प्रियतम हरजाई लिए अंकशायिनी सौत।
काहे का कोसा भरें कैसा करवा चौथ।।
घर बाहर भोगी रहे घर मे ले सन्यास।
उस पिय का क्या फायदा दूर रहे या पास।।
धन्य यहाँ की नारियाँ नेह मिले या त्रास।
पति की लंबी उम्र को रखती हैं उपवास।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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