दर्द क्यों कर सम्हाल कर रखते।
जो कदम देखभाल कर रखते।।
और कैसे बताते हाले-दिल
क्या कलेजा निकाल कर रखते।।
आँधियाँ चल रही थी जब हर सूँ
क्या चरागों को बाल कर रखते।।
उस गली एक दिन तो जाना था
क्यों महूरत को टाल कर रखते।।
क्यों न होते सिकन्दरे- आज़म
हम जो झण्डा उछाल कर रखते।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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