चल रहा है झूठ कितने पांव लेकर

आज क्या होता यही आया है अक्सर

न्याय जैसे शब्द इसके आश्रय हैं

सत्य भी छुपता है इसकी आड़ लेकर

कौन कहता है कला जापान की है

पद प्रतिष्ठा मान सबकी बोनसाई

सब तो अपने देश मे होती रही है

जन्म से अधिकार की बन्दर बंटाई

थक गई है पावनी कलि मल हरण से

भारती विश्राम करना चाहती है

आह भरती है अयोध्या के किनारे

सत्य का अवसान सरयू देखती है।।

सुरेश साहनी कानपुर

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