आज मर्यादा की लक्ष्मणरेखाओं के लांघने का समय है।मिथक साक्षी हैं कि उन्हीं शक्तियों के पटहरण के प्रयास हुए हैं,जिन्होंने वर्जनाओं का सम्मान किया।साहित्य में ऐसी लक्ष्मणरेखाओं की बहुलता रही है। इन नैतिक सीमाओं की रक्षा करते हुए हज़ारों कवि/ साहित्यकार काल कवलित हो कर गुमनामी के अंधेरों में विलीन हो गये।
समय बदला।आज के परिप्रेक्ष्य में कहा जाये तो वह हर व्यक्ति सफल है ,जिसने इन मर्यादाओं का उल्लंघन किया।कविता और गायकी में अंतर दिखना चाहिए।किन्तु ढेर सारे कवियों ने मात्र गलेबाजी के जरिये मंचों पर धमाल मचाया। हास्य के नाम पर पत्नी, साली और विवाहेतर फूहड़ चुटकुले मंचों की शोभा बने।वीर रस की रचनाओं में केवल वर्गीय घृणाएँ और पाकिस्तान के अतिरिक्त किसी तरह की सकारात्मकता का अभाव ही नजर आता है। लेकिन आज ऐसे ही लोग साहित्य जगत के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं। यह विडंबना ही आज का यथार्थ है।
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