ग़ज़ल छोटी बहर में लिख रहा हूँ।
ये मैं किसके असर में लिख रहा हूँ।।
वो कहते हैं बुजुर्गों जैसी बातें
बहुत छोटी उमर में लिख रहा हूँ।।
मेरी तक़दीर है ख़ानाबदोशी
इक आदत है सफ़र में लिख रहा हूँ।।
अभी जो शाम को गुज़री है हमपे
वही बातें सहर में लिख रहा हूँ ।।
पड़ेगी सायबानों को ज़रूरत
मैं जलती दोपहर में लिख रहा हूँ।।
हिला डाला हैं हमको आँधियों ने
मैं गिर जाने के डर में लिख रहा हूँ ।।
यकीं है एक दिन तो तुम पढ़ोगी
इसी फेरोफ़िकर में लिख रहा हूँ।।
हमारा दिल तेरे कदमों में होगा
पड़ा हूँ रहगुज़र में लिख रहा हूँ।।
मुझे सच बात कहने का जुनूँ है
मेरे क़ातिल के घर में लिख रहा हूँ।।
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