किसे ख़्वाबों में हम ढोने लगे हैं।
मुसलसल रतजगे होने लगे हैं।।
हमें मालूम है धोखे मिलेंगे
वफायें जिनसे संजोने लगे हैं।।
कोई अवतार लेना चाहता है
पहरुए रात दिन सोने लगे हैं।।
मुहब्बत चाहते हैं लोग लेकिन
सियासी नफ़रतें बोने लगे हैं।।
हमें पाना है तो कुछ दूर जाओ
तुम्हारे पास हम खोने लगे हैं।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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