मत कहो क्यों तीरगी बढ़ने लगी।
चाँद की आवारगी बढ़ने लगी।।
हुश्न का सागर छलावा ही रहा
डूबने पर तिश्नगी बढ़ने लगी।।
लोरियां गाती नहीं यादें तेरी
और ज्यादा रतजगी बढ़ने लगी।।
मैं बहकता भी तो कोई बात थी
होश में दीवानगी बढ़ने लगी।।
हुश्न परदे में न हो तो क्या करे
जब नज़र में गंदगी बढ़ने लगी।।
अब तो मैं भी देवता हो जाऊंगा
प्यार तेरी बन्दगी बढ़ने लगी।।
मर ही जाता मैं तुम्हारे प्यार में
मिल गए तो ज़िन्दगी बढ़ने लगी।।
सुरेश साहनी,कानपुर
Comments
Post a Comment