हमें यक़ीन है
वह भूख से नही मरी
वह भात के बग़ैर भी नही मरी
आके देखिये
गोदाम अनाज से भरे हुए हैं
लोग खाने बगैर कब मरते हैं
ज्यादा खाने से मरते हैं
गरीबों के लिए
बड़े बड़े होटल खुले हैं
अस्पताल खुले हैं
मेडिकल स्टोर खुले हैं
स्कूल खुले हैं
और सरकार खुद
गरीबों के लिए मर रही है
ये गरीब लोग भी
अज़ीब होते हैं
न चैन से जीते हैं
न जीने देते हैं
अरे मरना था तो
गोरखपुर चली जाती
वहां चुनाव पांच साल बाद है.....
सुरेश साहनी कानपुर।।
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